क्या आपका बच्चा मोबाइल गेम का आदि है? शीघ्र ध्यान दीजिये !

                 ऑनलाइन मोबाइल गेम से बच्चे घृणा, छल एवं चालाकी सीख रहे हैं। पबजी जैसे गेम बच्चों के मस्तिष्क के लिये अत्यंत हानिकारक हैं उन्हे इस प्रकार के खेल खेलने से रोकने की पहल करनी होगी, क्योंकि इस प्रकार के गेम्स से बच्चे के दिमाग में प्रतिशोध की भावना पनप रही है। आपको याद होगा ब्लू व्हेल नामक मोबाइल गेम की वजह से कई बच्चों को जान से हाथ धोना पड़ा था।
                 इसके मध्येनजर दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने शिक्षा निदेशालय को आवश्यक निर्देश दिये हैं। आयोग ने प्रधानाध्यापकों से बच्चों के बीच इस गेम की लत की जांच करने को भी कहा है। आयोग ने पबजी के साथ फोर्टनाइट, ग्रांड बेस्ट आदि खेलों को भी सूचीबद्ध किया है। प्रधानाध्यापकों से बच्चों को समझाने और पीटीएम के माध्यम से इस विषय पर विस्तार से चर्चा करने को कहा है।
                    पबजी के नकारात्मक प्रभाव का परिणाम लगातार देखने को मिल रहा है। मुंबई के कुर्ला में इसी सप्ताह एक किशोर ने गेम खेलने का महंगा स्मार्टफोन न मिलने से आत्महत्या कर ली। लड़के ने पबजी खेलने के लिये 37 हजार रुपये मांगे थे। इसी प्रकार राजकोट में भी गेम खेलने से मना करने पर पंद्रह वर्षिय बच्चे ने आत्महत्या कर ली थी।
आइये जानते हैं इसके बारे में विस्तार से -
                      मोबाइल गेम मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं। मानक वीडियो गेम आम तौर पर एक खिलाड़ी द्वारा खेला जाता है और इसमें एक स्पष्ट लक्ष्य या मिशन होता है, जैसे कि एक राजकुमारी को बचाना। इन खेलों की लत अक्सर उस मिशन को पूरा करने या उच्चत्तम स्कोर या पूर्व निर्धारित मानक को हराने से संबंधित होती है।
                 अन्य प्रकार के वीडियो गेम की लत ऑनलाइन मल्टीप्लेयर गेम से जुड़ी है। ये गेम अन्य लोगों के साथ ऑनलाइन खेला जाता है और विशेष रूप से यह एक नशे की लत की तरह है क्योंकि उसका आम तौर पर कोई अंत नहीं है। इस प्रकार की लत वाले गेम बनाने और आनंद लेने के लिए अस्थायी रूप से एक ऑनलाइन चरित्र बन जाता है। इस प्रकार के गेम खेलते खेलते बच्चे अक्सर वास्तविकता से भागने लगते हैं और अन्य ऑनलाइन खिलाड़ियों में ही उनको अपने दोस्त नजर आने लगते हैं। कुछ लोगों के लिए, यह समुदाय वह स्थान हो सकता है जहाँ उन्हें लगता है कि वे सबसे अधिक स्वीकृत हैं।
अत्यधिक गेम खेलने के दुष्प्रभाव -
● आपका बच्चा धीरे धीरे पढाई एवं अन्य कार्यों को करते समय बेचैनी महसूस करने लगता है।
● गेम के टारगेट को पुरा करने में इतना मशगूल हो जाता है कि भूख प्यास बस कुछ कम महत्वपूर्ण लगने लगता है।
● दिन रात या लगातार गेम खेलते रहने से बच्चे की आंखों पर बुरा प्रभाव पड़ता है। कम रोशनी या अंधेरे में मोबाइल की रोशनी सीधी आंखों में पड़ती है जिससे धीरे धीरे दिखना कम होने लगता है।
● फोन पर गेम्स खेलने से बच्चों को नींद से जुड़ी समस्याएं होने लगती है। रात को सोते समय गेम खेलने से बच्चों को रात में नींद देरी से आती है और कभी वे रात को उठ कर भी गेम्स खेलने लगते हैं। इस तरह नींद पूरी न होने के कारण उनकी स्वास्थ्य पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है।
● बच्चों के हाथों से जरा देर के लिए फोन ले लेने पर चिखने चिलाने लगते हैं और उनका स्वभाव चिड़चिड़ा हो जाता है। कई बार तो बच्चे खाना-पीना भी छोड़ देते हैं।
इस आदत से बच्चों को बचाने के कुछ उपाय-
इस प्रकार की आदत से बचना बहुत ज़रूरी होता है, वर्ना उसका असर आपके बच्चे की निजी जिंंदगी पर भी पड़ सकता है। लगातार काम या रिश्तों को अनदेखा करना किसी भी तरह से हितकर नहीं है।
बच्चे के सहपाठियों से जितना अधिक हो सके, मेलजोल बढ़ाएं। इसके लिए विभिन्न अवसरों पर पार्टी आदि का आयोजन करते रहें। अपने परिवार व बच्चों भी के लिए समय निकालें।
अपने बच्चों के सभी कार्यों के लिए समय-सीमा निर्धारित करें एवं उसका गंभीरता से पालन करवायें।
एकाग्रता बढ़ाने के लिए ज़रूरी है कि बच्चे के दिमागी कार्यों व पढाई के बीच कुछ समय का ब्रेक देते रहें। हो सके तो इन ब्रेक्स में बच्चे को कहीं घूमाने ले जायें।
बच्चों को मोबाइल, लैपटॉप व इंटरनेट का ज़्यादा इस्तेमाल न करने दें और उन पर नज़र भी रखे रहें।
अगर तमाम कोशिशों के बावज़ूद इन डिजिटल गेम्स से दूरी न बन पा रही हो तो किसी मनोवैज्ञानिक सलाहकार की मदद लेने में हिचकिचाएं नहीं।
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